कही सें एक लों जल उठी है सिनेमे
बाहर घना अंधेरा और मन में हजारो चीन्गारीया पनप राही है |
झेले कोटी कोटी ऐसे काले बदल एक शलाका की उम्मीद लेकर
मग आज शलाका जन्म ले राही है मुझमे |
धूप भी मै, तेज भी मै, मंडरता तुफान भी मै
निश्चल हवा का झोका भी मै और गीत गाता हुवा मुस्कुरात हुवा झराना भी मै |
आज जले है ऐसे अंगारे जो हजारो तारों को ओझाल कर दे
अगर नाही दिखा प्रकाश तो खुद प्रदीप्ती बन जाऊ मै...एक नयी चमक है कुछ दिनो सें आखो मे |
है बहार घना अंधेरा मगर तेजोमय हुं मै
गीर पडू, चोट खाऊ..... मगर सम्भलकर चलना जानू मै |
आज हुं मै स्वतंत्र आज हुं मै धृड आज हुं मै लीन
अगर ना दे कोई साथ तो मुश्किलों सें खुद झपट पडू मैदान मै |
गीर पडू तो तुम सुलाना मुझे उस चंचल नदी की गोद में
एक नाय उष:काल बनके फिर लौटूगा मै..... एक नयी चेतना एक नाया विश्वास एक नयी चमक है कुछ दिनो सें इसी आखो मै |
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